भारतीय पारंपरिक आहार पर चोट क्यों…?

समोसा, जलेबी, आलूबंडा, पकौड़े पर केंद्र का आदेश अव्यवहारिक

जबलपुर।  गरीब तथा मध्यम वर्ग के लोग रोजाना  समोसे, जलेबी, पकौड़े आदि भारतीय पारंपरिक आहार का सेवन कर अपने काम धंधों में जुट जाते है| यह परंपरा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों वर्षो से जारी है| अपने सामने तले हुए ताजे पदार्थ तथा वे भी खरीदी क्षमता के भीतर सस्ते होने के कारण समोसे, पकोड़े, जलेबी आदि खाद पदार्थ भारी प्रसिद्ध है, विशेषत:  समूचे उत्तर भारत में|
ऐसे में इन भारतीय पारंपरिक आहार वालें पदार्थों का कोई विकल्प नहीं सोचकर उन्हें यह कहते हुए नकारना  की इनके तेल एवं शक्कर के मात्राओं से मोटापा बढ़ता है, यह पूर्णत: अव्यवहारिक है|
अत: केंद्र सरकार द्वारा 10 जुलाई को जारी आदेश पर पुनर्विचार करें, यह पत्र नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भेजा है|
मंच ने स्पष्ट किया की आहार में तेल एवं शक्कर की मात्रा ज्यादा होने से स्वास्थ्य हानि होती है, इस तथ्य की वैज्ञानिकता को स्वीकारा जाए,  किन्तु ऐसा आदेश जारी करने के पूर्व में वैकल्पिक स्थिति को जनता के सामने रखा जाना चाहिए|

समोसा, जलेबी जंक फूड नहीं ………..

जंक फूड में ”प्रीजर्वेटीज” डाला जाता है| ऐसे पैकेज्ड फूड को बेचा जाता है| ऐसे जंक फूड के संबंध में भारत में कोई  रेग्युलेशन नहीं है|
किन्तु समोसा, जलेबी आदियों में ”प्रीजर्वेटीज” नहीं डाला जाता है वे तो तत्काल स्थल पर ही निर्मित कर बेचा जाये है| ऐसे में उन्हें जंक फूड के श्रेणी में डालना गलत है|
डॉ. पीजी नाजपांडे, रजत भार्गव, एड.वेदप्रकाश अधौलिया, डीआर लखेरा, सुशीला कनौजिया, गीता पांडे, राममिलन शर्मा आदि ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से इस संबंध में आपत्ति दर्ज कराई है|