जबलपुर। नागदेवता की पूजा अर्चना का महापर्व नागपंचमी मंगलवार 29 जुलाई को है। नागपंचमी पर घर-घर में नागदेवता की पूजा कर उन्हें फूल, चांवल, चंदन चढ़ाकर दुग्धपान कराया जायेगा और श्रद्धालु नागदेवता से अपनी रक्षा और खेत खलिहानों में फसलों की रक्षा करने की प्रार्थना करेंगे। शहर के अति प्राचीन और प्रसिद्ध नागमंदिर गौरीघाट में भी इस अवसर पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किये जा रहे है। नागपंचमी पर मल्लयुद्ध (दंगल) और बाजी के करतब की भी अति प्राचीन परंपरा है। नागपंचमी के दिन अखाड़ों में भी विशेष पूजा अर्चना कर पटा बनैटी का प्रदर्शन किया जाता है। ये परंपरा प्राचीन तो है लेकिन आधुनिकता की होड़ में सब कुछ विलुप्त होता जा रहा है। वनों से सांपों को पकड़ने पर वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा लगायी गई रोक के बाद अब सपेरे नजर नहीं आते है, पहले एक पखवाड़े पूर्व से सपेरे शहर में आ जाते थे और बीन बजाकर घर-घर नागदेव के दर्शन कराकर दान-दक्षिणा लेते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा हैं। आज नागपंचमी है और एक दिन पूर्व तक एक भी सपेरा नजर नहीं आये। वन विभाग की नजर सपेरों पर होने के कारण अब गिने चुने सपेरे ही नजर आयेंगे।
बहरहाल धार्मिक मान्यताओं को पर्यावरण से जुड़े इस त्योहार को श्रद्धा और आस्था से मनाया जायेगा। घर-घर नागदेवता की पूजा की जायेगी। सनातनी संस्कृति में ऐसी मान्यता है, कि पृथ्वी भगवान शेषनाग के फन पर टिकी हुई है। प्रकृति के सर्वाधिक विषधर का मनुष्य के प्रति समर्पण भाव और देवता के रूप में उनकी मान्यता भी नागपंचमी के रूप में पूजा अर्चना कर की जाती है। अखाड़ों में होने वाले प्रदर्शन भी अब नगण्य हो गये है। सपेरों की कमी के कारण बाजी के करतब भी देखने में नजर नहीं आते है। दंगलों के आयोजनों की भी कमी हो गई है। नागदेवता का शिवजी से सीधा संपर्क है। वे शिवजी के गले का हार हैं और श्रावण मास शिवजी की विशेष आराधना का होता है। ऐसे में शिवजी का अभिषेक और नागदेवता की पूजा से श्रद्धालुओं को दोगुने पुण्य की प्राप्ति होगी।
